बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 गृहविज्ञान बीए सेमेस्टर-3 गृहविज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
|
0 |
बीए सेमेस्टर-3 गृहविज्ञान
प्रश्न- वृद्धावस्था में संज्ञानात्मक सामर्थ्य एवं बौद्धिक पक्ष पर प्रकाश डालिए।
अथवा
वृद्धावस्था में संज्ञानात्मक परिवर्तनों की विवेचना कीजिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. संज्ञान का अर्थ
2. संज्ञान के सिद्धान्त
3. संज्ञान की विशेषताएँ।
उत्तर -
संज्ञान की अवधारणा का प्रयोग विकासात्मक मनोविज्ञान के व्यापक संदर्भ में किया जाता है। मनोवैज्ञानिकों ने संज्ञान को पूर्व में एक जन्मजात विशेषता के रूप में माना था अतः संज्ञानात्मक अनुभवों की विशेषताओं के बारे मंक विस्तृत अध्ययन या खोज नहीं की गयी। आधुनिक मनोवैज्ञानिकों ने किसी भी व्यक्ति की चिंतन प्रक्रिया, तर्क की शक्ति, प्रत्यक्षीकरण के साथ-साथ समस्या के हल ढूँढ़ने की क्षमता का विश्लेषण कर उन तत्वों को ढूँढ़ा जो किसी भी व्यक्ति के व्यवहार को निर्देशित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
संज्ञानवादी मनोवैज्ञानिकों ने संज्ञान को सूचना रूपों के क्रियान्वयन की एक विधि माना है।
संक्षिप्त में सूचनाओं के क्रियान्वयन को निम्नानुसार समझा जा सकता है। यह प्रक्रिया व्यक्ति के द्वारा निम्न चरणों में पूर्ण होती है-
व्यक्ति | |||
वातावरण के तत्वों का प्रत्यक्षीकरण करता है। | |||
प्रतीकों की सहायता से समझने की कोशिश करता है। | तत्वों के संदर्भ में अमूर्त चिंतन करता है। | ||
जो व्यक्ति के व्यवहार को निर्देशित करता है। | साथ ही संज्ञानात्मक संरचना का निर्माण करता है। | उक्त प्रक्रियाओं से मिलकर अपने में ज्ञान भण्डार बनाता है। |
अर्थात् व्यक्ति वातावरण की स्थिति विभिन्न उद्दीपनों से क्रिया-प्रक्रिया के दौरान प्रभावित होकर सीधे प्रतिक्रिया नहीं करता है बल्कि पहले वह उन उद्दीपनों को ग्रहण करता है तत्पश्चात् वह उनकी व्याख्या करता है। इस दौरान व्याख्या के फलस्वरूप बाह्य उद्दीपक उस व्यक्ति की संज्ञानात्मक संरचना में अव्यवस्थित हो जाते हैं व इस प्रकार व्यक्ति के अंदर। विकसित संज्ञानात्मक संरचना वातावरणीय उद्दीपनों तथा व्यक्ति के व्यवहार के मध्य मध्यस्थता का कार्य करती है।
संज्ञान का अर्थ
(Meaning of Cognition)
संज्ञान वह मानसिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति प्रत्यक्षीकरण, पुनः स्मरण व चिंतन की क्रिया को सम्पादित करता है।
संज्ञान की यह प्रक्रिया बाल्यकाल से प्रारंभ होकर 30 से 40 वर्ष की आयु तक चलती रहती है। फलस्वरूप व्यक्ति के ज्ञान का भण्डारण तथा परिवेश, जन्म या समयानुकूल समस्या समाधान के क्षेत्र में प्रयोग करने की क्षमता में वृद्धि होती जाती है। संज्ञान की उपरोक्त प्रक्रिया निम्न चरणों में सम्पन्न होती है-
1. प्रत्यक्षीकरण (Perception ) - इस चरण में व्यक्ति उपलब्ध जानकारी को सूचीबद्ध कर आंतरिक व बाह्य वातावरण से तुलना कर किसी एक निष्कर्ष पर पहुँचता है।
2. स्मृति (Memory )— प्रत्यक्षीकरण के लिए यह आवश्यक है कि व्यक्ति द्वारा अपने मस्तिष्क में तुलनात्मक अध्ययन करने हेतु स्मृति पटल में से उपलब्ध जानकारी प्राप्त की जा सके।
3. युक्तिसंगत चिंतन ( Reasoning ) - व्यक्ति द्वारा प्राप्त जानकारी की स्मृति पटल में संरक्षित जानकारी से तुलना करने के बाद युक्तिसंगत या तार्किक चिंतन द्वारा उपयुक्त निष्कर्ष तक पहुँचने की क्षमता।
4. मूल्यांकन (Evaluation ) — तर्क के आधार पर व्यक्ति के द्वारा लिये गये निर्णय एवं उसके परिणाम के आधार पर मूल्यांकन करने की योग्यता।
5. अन्तर्दृष्टि (Insight) - उपरोक्त सभी चरणों को पूरा करते समय नये विचार या स्थितियों का आपसी संबंध देखने की क्षमता का होना।
संज्ञान की परिभाषा
(Definition of Cognition )
स्टॉट (Stott) के द्वारा संज्ञानात्मक संरचना की परिभाषा देते हुए बताया गया है कि- " संज्ञानात्मक क्षमता बाह्य वातावरण में विचारपूर्वक प्रभावपूर्ण ढंग से तथा सुविधा के साथ कार्य करने की क्षमता है।"
उपरोक्त परिभाषा से यह स्पष्ट होता है कि शिशु के जन्म के बाद से ही संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं का विकास प्रारंभ हो जाता है एवं विकासक्रम में व्यक्ति इन्हीं प्रक्रियाओं की सहायता से आस-पास के वातावरण की विभिन्न विशेषताओं, लक्षणों को समझने में सक्षम हो पाता है।
संज्ञान की विशेषताएँ
(Characteristics of Cognition)
संज्ञान में अमूर्तिकरण, अंतरण, प्रत्यक्षीकरण, व्याख्या तथा प्रतीकों के उपयोग जैसी विशेषताओं का समावेश होता है। इन विशेषताओं की एक खास बात यह होती है कि वे सभी आंतरिक एवं अव्यक्त होती हैं तथा मूल रूप से व्यक्तिगत होती हैं। व्यक्ति द्वारा किसी परिस्थिति में किये गये व्यवहार संबंधी विचारों को प्रत्यक्ष रूप से नहीं समझा जा सकता है। संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं के संबंध में तभी ज्ञात किया जा सकता है जब व्यक्ति लिखकर, बोलकर अथवा कोई कार्य संपादित कर हमारा ध्यान आकर्षित करता है।
संज्ञान की दूसरी विशेषता यह है कि इसे एक जटिल मानसिक अनुभव माना जाता है। संज्ञान की तीसरी विशेषता यह है कि वातावरणीय उद्दीपनों और व्यक्ति की प्रक्रियाओं के बीच मध्यस्थता का कार्य करती है।
वातावरणीय उद्दीपनों द्वारा प्रभावित होकर व्यक्ति विशिष्ट प्रकार के व्यवहार प्रदर्शित करता है, किंतु इन व्यवहारों का नियंत्रण वास्तव में व्यक्ति की संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं पर निर्भर करता है। किसी विशेष समय या परिस्थिति में कोई व्यक्ति किस प्रकार की प्रतिक्रिया प्रदर्शित करेगा यह व्यक्ति के प्रत्यक्षीकरण, चिंतन तथा तर्क पर आधारित होता है।
संज्ञान का केंद्रीय तत्व वातावरण तथा उद्दीपक जगत के संबंध में ज्ञान अर्जन (Knowing) है। विकास की प्रारंभिक अवस्थाओं में बालक के अपरिपक्व होने के कारण वह तार्किक चिंतन नहीं कर पाता है, किंतु धीरे-धीरे संज्ञानात्मक दृष्टि से परिपक्व हो जाता है। अतः बालक व प्रौढ़ के ज्ञान में बहुत अधिक अंतर पाया जाता है।
संज्ञान के सिद्धांत (Theories of Cognition ) व्यक्ति के अंदर संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं का विकास प्रमुखतः दो परस्पर विरोधी सिद्धांतों पर आधारित होता है-
1. साहचर्यवादी (Associationistic ) - इस सिद्धांत को मानने वालों का कहना है कि व्यक्ति के ज्ञान का निर्माण विभिन्न अनुभवों के साहचर्य के आधार पर होता है। फलस्वरूप व्यक्ति के भीतर एक ज्ञान भण्डार बनता है।
2. विकासात्मक (Developmental ) संज्ञान का यह सिद्धांत परस्पर विरोधी सिद्धांत के आधार पर विकसित किया गया है जिसे विकासात्मक कहते हैं। इस सिद्धांत का प्रतिपादन डॉ० पियाजे (Piaget) ने किया। इस सिद्धांत के अनुसार व्यक्ति में कुछ जन्मजात क्षमताएं विद्यमान होती हैं जिनकी सहायता से वह विकास क्रम में उद्दीपन जगत् से संबंधित ज्ञान अर्जित करता है।
संपूर्ण विकास काल में व्यक्ति की संज्ञानात्मक प्रक्रियाएं जैसी थीं वैसी ही बनी रहती हैं, परंतु अर्जित ज्ञान के स्वरूप में परिवर्तन पाया जाता है, यही कारण है जो व्यक्ति अपने प्रारंभिक जीवन में अतार्किक चिंतन करता है वह आगे की अवस्थाओं में तार्किक चिंतन करने योग्य हो जाता है। इस प्रकार यह प्रक्रिया विकसित हो जाने पर व्यक्ति के द्वारा गलत प्रत्यक्षीकरण नहीं किया जायेगा। अब व्यक्ति में वह योग्यता विकसित हो जाती है और वह उद्दीपक जगत् के पर्याय रूप को समझने लगता है।
पियाजे ने संज्ञानात्मक विकास के संदर्भ में अध्ययन अपनी तीन बेटियों पर निरीक्षण पद्धति के द्वारा किया। इस दौरान उनके मस्तिष्क में कई प्रश्न उठे, जैसे- बच्चों में प्रतीकों का विकास किस प्रकार होता है? बच्चे गलत उत्तर क्यों देते हैं? बच्चे किस प्रकार से विचार और भाषा को जोड़ते हैं? आदि।
पियाजे ने कहा है कि संज्ञान प्राणी का वह ज्ञान है जिसे वह वातावरण के संपर्क में आने पर अर्जित करता है। इस प्रकार के ज्ञान में अनेक मानसिक प्रक्रियाएँ जुड़ी होती हैं, जो निरंतर चलती रहती हैं व विकास की विशेष अवस्था में बदलती नहीं है परंतु अर्जित ज्ञान भण्डार का स्वरूप या ढाँचा विकास की प्रत्येक अवस्था में परिवर्तित व सुधरता जाता है। यही कारण है कि पियाजे ने संज्ञान सिद्धांत को अवस्था सिद्धांत कहा है क्योंकि संज्ञान का स्वरूप पृथक्-पृथक् अवस्था में पृथक् पृथक् होता है। बालकों के द्वारा प्रत्येक विकासात्मक अवस्था में अर्जित ज्ञान को स्कीमा कहा जाता है, इस प्रकार संपूर्ण संज्ञान विकास को उन्होंने चार प्रमुख अवस्थाओं में विभाजित किया है, जो निम्नानुसार हैं-
1. संवेदी-पेशीय अवस्था।
2. पूर्व - संक्रियात्मक अवस्था।
3. स्थूल संक्रियात्मक अवस्था।
4. औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था।
जरण के कारण संज्ञानात्मक परिवर्तन (Cognitive changes due to aging ) — जरण के दौरान संज्ञान से जुड़ी क्रियाओं में परिवर्तन वृद्धावस्था का एक लक्षण माना जाता है। इस प्रकार का परिवर्तत अंशत: शारीरिक कारणों एवं अंशतः मानसिक कारणों से होता है।
बाल्यकाल की तुलना में इस समय व्यक्ति की संवेदनाओं का कम क्रियाशील होना पाया जाता है। उसका कारण मस्तिष्क की कोशिकाओं को पर्याप्त पोषण प्राप्त न होना है। सभी प्रकार की इंद्रिय कोशिकाओं में गिरावट देखी जाती है, जैसे-सुनाई कम देना, आँखों से कम दिखना। फलस्वरूप संज्ञान की प्राथमिक क्रिया पर इसका सबसे पहले प्रभाव पड़ता है।
सभी वृद्ध व्यक्ति अपनी भूलने की आदत से परिचित रहते हैं, साथ ही नई क्रियाओं को सीखने में अरुचि, नये नाम याद रखना, नई आकृतियों के बारे में याद रखना, नये तथ्य, आसान समस्याओं को हल करने की योग्यता में कमी का अहसास उन्हें रहता है। उन्हें यह अहसास रहता है कि संज्ञानात्मक रूप से वे अब निद्रा की अवस्था (Stage of slipping) में पहुँच गये हैं। अक्सर वृद्ध व्यक्ति मस्तिष्क से जुड़े उन खेलों में रुचि कम लेते हैं जहाँ शीघ्र चिंतन की आवश्यकता हो या जहाँ त्वरित जवाब देना हो।
साधारणतया जीवन की मध्यावस्था से यह परिवर्तन प्रारंभ होकर जीवन के अधिकतम दिनों तक चलते रहते हैं। अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि संज्ञानात्मक परिवर्तन का एक प्रमुख कारण शारीरिक दशा है। वातावरणीय उद्दीपक का अभाव संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं को प्रभावित करता है।
उम्र का बढ़ना व्यक्ति की विभिन्न क्षमताओं को प्रभावित करता है तथा ये प्रभाव व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक स्तर पर अलग-अलग तरीके से दिखाई देते हैं। यह सर्वविदित है कि व्यक्ति में होने वाले शारीरिक परिवर्तन को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है और उसकी क्षमताओं का परिवर्तन भी विभिन्न प्रकार से नापा जा सकता है। मानसिक क्षमताओं के बारे में किसी प्रकार की टिप्पणी करना इतना आसान नहीं है फिर भी उपलब्ध तथ्यों व आँकड़ों तथा शोध के परिणामों के आधार पर कुछ हद तक इन परिवर्तनों का मूल्यांकन किया जा सकता है।
संज्ञान में वृद्धि जन्म के उपरांत ही शुरू हो जाती है एवं जीवन के 30 या 40 वर्ष में यह अपनी चरम सीमा पर होती है। 50 से 60 वर्ष तक की आयु में भी यह अपनी चरम सीमा में रहती है, परंतु इसके उपरांत इसके क्रिया रूपों में गिरावट प्रारंभ हो जाती है। यह गिरावट व्यक्ति-व्यक्ति पर निर्भर करती है, जैसे कुछ व्यक्तियों में इस प्रकार का ह्रास थोड़ा होता है जबकि कुछ में गंभीर प्रकृति का होता है। साधारणतया संज्ञान से उत्पन्न हुआ परिवर्तन 70 वर्ष की आयु के उपरांत ही स्पष्ट दिखाई देने लगता है।
ये तथ्य ऐसे अध्ययनों से प्राप्त आँकड़ों पर आधारित हैं जहाँ विभिन्न आयु वर्ग का औसत का आँकड़ा निकाला गया। हालांकि इस प्रकार के अध्ययनों से प्राप्त आँकड़ों में बहुत विभिन्नता रही फिर भी जो सर्वमान्य निष्कर्ष निकाला गया वह इस प्रकार था कि बढ़ती आयु के साथ संज्ञान क्षमताओं में शिथिलता बढ़ती है। अध्ययन से इस बात की भी पुष्टि हुई है कि हमेशा या प्रत्येक व्यक्ति के साथ उपरोक्त परिवर्तन हो यह आवश्यक नहीं है। कुछ ऐसे व्यक्ति भी पाये जाते हैं जिनमें 70 की आयु के बाद भी संज्ञान क्षमता पूर्णरूपेण विद्यमान है।
उपरोक्त जानकारी अमेरिका फेडरेशन फॉर ऐजिंग रिसर्च द्वारा प्राप्त की गई है।
Aging research केन्द्र द्वारा व्यक्ति के संपूर्ण जीवन काल पर किये गये एक अध्ययन में देखा गया है कि 81 वर्ष की उम्र तक केवल 30-40 प्रतिशत व्यक्तियों में संज्ञान क्षमता का ह्रास हुआ है, शेष दो तिहाई व्यक्तियों में यह हास बहुत ही कम मात्रा में हुआ है। यह भी पाया गया है कि कुछ विशेष प्रकार की संज्ञान प्रक्रिया जहाँ कम होती हैं वहीं दूसरे प्रकार की संज्ञान क्षमता में वृद्धि की भी संभावना देखी जाती है।
संज्ञान प्रक्रियाओं में परिवर्तन को समझने के लिये कुछ कारकों के बारे में अलग से अध्ययन करना होगा जिनका सीधा संबंध व्यक्ति की संज्ञान क्षमता से है।
तरल तथा रवाकृत बुद्धि (Fluid and Crystallized Intelligence )
ध्यान (Attention )
सूचना विश्लेषण की गति (Processing Speed)
स्मृति (Memory )
समय के साथ व्यक्ति की संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं पर उम्र का प्रभाव विभिन्न प्रकार से पड़ता है। जैसा कि पूर्व में बताया गया है कि संज्ञान एक जटिल अनुभव है जिसके अंतर्गत कई पहलू ऐसे भी हैं जिनका संज्ञान की प्रक्रियाओं पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। संज्ञान क्षमता को मापने का एक तरीका बुद्धि है। बुद्धि की कार्यप्रणाली को सामान्य तरीके से दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है जिसका पहला वर्गीकरण तरल बुद्धि व दूसरा रवाकृत बुद्धि बताया गया है।
तरल बुद्धि जिसे मानसिक योग्यता का जन्म स्थली कहा जाता है वास्तव में सूचना क्रियान्वयन का कार्य करती है। यह योग्यता व्यक्ति की वह सामान्य क्षमता है जिसके द्वारा उपलब्ध सूचना का विश्लेषण व्यक्ति द्वारा किया जाता है। व्यक्ति की वह योग्यता जिसके फलस्वरूप वह चिंतन, युक्ति या तर्क जैसी मानसिक क्रियाओं को संभव करता है, साथ ही उस योग्यता के अंतर्गत सूचना विश्लेषण करने की गति के साथ-साथ ध्यान तथा स्मृति की योग्यता भी सम्मिलित है।
रवाकृत या क्रिस्टल बुद्धि वह बुद्धि है जिसके अंतर्गत बाल्यकाल से सीखे हुए ज्ञान जिसे व्यक्ति ने रोजमर्रा की दिनचर्या विद्यालय या अपने परिवार से प्राप्त किया है एवं जिसे वह भाषण द्वारा व्यक्त कर सकता है, रवाकृत बुद्धि कहलाती है। इस प्रकार की बुद्धि के कारण ही व्यक्ति सीखे हुए ज्ञान का प्रयोग जीवन पर्यन्त करता है तथा रोज की समस्याओं का समाधान ढूँढने का प्रयास करता है।
अमेरिकन शोध संस्थान की रिपोर्ट के अनुसार देखा गया है कि तरल बुद्धि बढ़ती आयु के साथ क्षय होती है या किन्हीं किन्हीं व्यक्तियों में यह कम हो जाती है. जबकि व्यक्ति की क्रिस्टलीय बुद्धि पर बढ़ती हुई आयु का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। ऐसे कई शोध परिणाम देखे गये हैं जहाँ यह बात स्पष्ट रूप से कही गई है कि बढ़ती उम्र के साथ क्रिस्टल बुद्धि बढ़ती है घटती नहीं है। इसका उदाहरण हम समाज में देखते हैं कि ऐसे कई व्यक्ति हैं जो अपने द्वारा चयनित विद्या के कार्य या कार्यक्षेत्र में निरंतर कुशलता और निपुणता प्राप्त करते हैं जो उम्र के साथ बढ़ती है। ऐसे कार्य जो स्वभाववश जटिल माने जाते हैं जहाँ नये सूचना रूपों को संग्रह कर उनका विश्लेषण करना पड़ता है, बढ़ती उम्र के व्यक्ति के लिये यह एक जटिल या कठिन कार्य कहा जाता है। कई शोधकर्त्ताओं ने इस बात की पुष्टि की है कि आयु वृद्धि के साथ-साथ ध्यान की क्षमता, क्रियान्वयन की गति व स्मृति में कमी आती है।
ध्यान (Attention )—किसी भी कार्य की शुरूआत करने से पूर्व सूचनाओं के संग्रहण में ध्यान की आवश्यकता है। ध्यान वह योग्यता है जो सूचनाओं के एकत्रीकरण में किसी एक खास सूचना पर ध्यान केंद्रित करने में व्यक्ति को मदद करता है, साथ ही भविष्य के लिए वह सूचना कितनी महत्वपूर्ण है या उसमें कितनी मात्रा में और विश्लेषण करना पड़ेगा आदि तय करने में मदद करता है। एक माह में एक सीमित अवधि में व्यक्ति किसी एक मुद्दे पर ध्यान केंद्रित कर सकता है तथा यह भी संभव है कि बहुत सारी सूचनाओं में से सीमित समय के लिए वह किसी एक सूचना पर ध्यान दे सकता है।
जरण के साथ ध्यान योग्य योग्यता में कमी देखी गई है क्योंकि दयालु बुद्धि के साथ व्यक्ति की चिंतायें, दुश्चितायें, उत्तरदायित्व व राशि का बोझ इतना बढ़ जाता है कि वह जीवन की प्रत्येक छोटी-बड़ी समस्याओं पर ध्यान नहीं दे पाता है, इसका कारण प्रमुख रूप से जरण बताया गया है।
शोधकर्त्ताओं ने अनुसंधान के द्वारा यह पाया कि कई वृद्ध व्यक्ति प्राप्त सूचनाओं से कौन-सी सूचना महत्वपूर्ण, संबंधित या जरूरी है, में अंतर-भेद में काफी कठिनाई बोध करते हैं। सूचना विश्लेषण की गति में कमी के कारण मानसिक क्रियाओं को करने में स्वयं को असमर्थ महसूस करते हैं।
जरण के कारण ध्यान केंद्रीयकरण में कमी, सूचनाओं के विश्लेषण करने की नीति में कमी व पुरानी बातों को याद करने में विलम्ब या असफलता आदि संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं में देखी गई है।
आयु वृद्धि के कारण ध्यान की शैली में भी परिवर्तन देखा गया है। ध्यानाकर्षण कठिनाइयाँ प्रायः सभी वृद्ध व्यक्तियों में पाई जाती हैं क्योंकि उनमें सूचनाओं के विश्लेषण की क्षमता में लगातार कमी आ जाती है।
विश्लेषण की गति (Processing Speed) – आयु वृद्धि के साथ प्रतिक्रिया काल, मानसिक विश्लेषण की क्षमता में कमी आती है जिसकी शुरुआत नव प्रौढ़ावस्था से हो जाती है (20 वर्ष की आयु के बाद)। साठ वर्ष की आयु का व्यक्ति एक जवान व्यक्ति की तुलना में कोई भी मानसिक कार्य को सम्पन्न करने में न केवल अधिक समय लेता है बल्कि कई प्रकार की गलतियों को भी करता है। जरण का प्रभाव मानसिक विश्लेषण की क्षमता पर 'काफी ज्यादा पड़ता है।
किसी एक ऐसे बुद्धि परीक्षण को लें जिसमें समय सीमा के अंदर उसे निष्पादित करना पड़ता है, वहाँ नवप्रौढ़ वृद्ध व्यक्ति की तुलना में जल्दी निष्पादित करते हैं। इसका कारण संज्ञानात्मक प्रक्रिया रूपों में कमी होना है। वैसे शोधकर्त्ताओं का मानना है कि वृद्ध व्यक्ति की मानसिक योग्यता में जरण के कारण कोई कमी नहीं आती है बल्कि सूचना विश्लेषण की गति में धीमापन आने के कारण वे समय-सीमा में किसी कार्य को पूरा नहीं कर पाते हैं।
शोधकर्त्ताओं का मानना है कि सूचना विश्लेषण की गति में कमी का कारण व्यक्ति द्वारा संज्ञानात्मक कठिनाइयाँ अनुभव करना है। हालांकि यही एकमात्र कारण नहीं कहा जा सकता है व दूसरे कौन से कारक हो सकते हैं, यह भी आज तक का ज्ञान है। यह भी निश्चित है कि आयु वृद्धि के साथ सभी प्रकार की मानसिक क्रियाओं की गति में कमी एकसमान नहीं आती है। कुछ प्रक्रियाएँ गंभीर रूप से प्रभावित होती हैं, जबकि जरण (Aging) का कुछ मानसिक प्रक्रियाओं पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
|
- प्रश्न- आहार आयोजन से आप क्या समझती हैं? आहार आयोजन का महत्व बताइए।
- प्रश्न- आहार आयोजन करते समय ध्यान रखने योग्य बातें बताइये।
- प्रश्न- आहार आयोजन को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- एक खिलाड़ी के लिए एक दिन के पौष्टिक तत्वों की माँग बताइए व आहार आयोजन कीजिए।
- प्रश्न- एक दस वर्षीय बालक के पौष्टिक तत्वों की मांग बताइए व उसके स्कूल के लिए उपयुक्त टिफिन का आहार आयोजन कीजिए।
- प्रश्न- "आहार आयोजन करते हुए आहार में विभिन्नता का भी ध्यान रखना चाहिए। इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आहार आयोजन के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- दैनिक प्रस्तावित मात्राओं के अनुसार एक किशोरी को ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
- प्रश्न- सन्तुलित आहार क्या है? सन्तुलित आहार आयोजित करते समय किन-किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
- प्रश्न- आहार द्वारा कुपोषण की दशा में प्रबन्ध कैसे करेंगी?
- प्रश्न- वृद्धावस्था में आहार को अति संक्षेप में समझाइए।
- प्रश्न- आहार में मेवों का क्या महत्व है?
- प्रश्न- सन्तुलित आहार से आप क्या समझती हैं? इसके उद्देश्य बताइये।
- प्रश्न- वर्जित आहार पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- शैशवावस्था में पोषण पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- शिशु के लिए स्तनपान का क्या महत्व है?
- प्रश्न- शिशु के सम्पूरक आहार पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- किन परिस्थितियों में माँ को अपना दूध बच्चे को नहीं पिलाना चाहिए?
- प्रश्न- फार्मूला फीडिंग आयोजन पर एक लेख लिखिए।
- प्रश्न- 1-5 वर्ष के बालकों के शारीरिक विकास का वर्णन करते हुए उनके लिए आवश्यक पौष्टिक आहार की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- 6 से 12 वर्ष के बालकों की शारीरिक विशेषताओं का वर्णन करते हुए उनके लिए आवश्यक पौष्टिक आहार की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- विभिन्न आयु वर्गों एवं अवस्थाओं के लिए निर्धारित आहार की मात्रा की सूचियाँ बनाइए।
- प्रश्न- एक किशोर लड़की के लिए पोषक तत्वों की माँग बताइए।
- प्रश्न- एक किशोरी का एक दिन का आहार आयोजन कीजिए तथा आहार तालिका बनाइये।
- प्रश्न- एक सुपोषित बच्चे के लक्षण बताइए।
- प्रश्न- वयस्क व्यक्तियों की पोषण सम्बन्धी आवश्यकताओं का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वृद्धावस्था की प्रमुख पोषण सम्बन्धी आवश्यकताएँ कौन-कौन-सी हैं?
- प्रश्न- एक वृद्ध के लिए आहार योजना बनाते समय आप किन बातों को ध्यान में रखेंगी?
- प्रश्न- वृद्धों के लिए कौन से आहार सम्बन्धी परिवर्तन करने की आवश्यकता होती है? वृद्धावस्था के लिए एक सन्तुलित आहार तालिका बनाइए।
- प्रश्न- गर्भावस्था में कौन-कौन से पौष्टिक तत्व आवश्यक होते हैं? समझाइए।
- प्रश्न- स्तनपान कराने वाली महिला के आहार में कौन से पौष्टिक तत्वों को विशेष रूप से सम्मिलित करना चाहिए।
- प्रश्न- एक गर्भवती स्त्री के लिए एक दिन का आहार आयोजन करते समय आप किन किन बातों का ध्यान रखेंगी?
- प्रश्न- एक धात्री स्त्री का आहार आयोजन करते समय ध्यान रखने योग्य बातें बताइये।
- प्रश्न- मध्य बाल्यावस्था क्या है? इसकी विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- मध्य बाल्यावस्था का क्या अर्थ है? मध्यावस्था में होने वाले शारीरिक परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शारीरिक विकास का क्या तात्पर्य है? शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाले करकों को समझाइये।
- प्रश्न- क्रियात्मक विकास का क्या अर्थ है? क्रियात्मक विकास को परिभाषित कीजिए एवं मध्य बाल्यावस्था में होने वाले क्रियात्मक विकास को समझाइये।
- प्रश्न- क्रियात्मक कौशलों के विकास का वर्णन करते हुए शारीरिक कौशलों के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक विकास से आप क्या समझते हैं? सामाजिक विकास के लिए किन मानदण्डों की आवश्यकता होती है? सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- समाजीकरण को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले तत्वों की विस्तारपूर्वक चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- बालक के सामाजिक विकास के निर्धारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- समाजीकरण से आप क्या समझती हैं? इसकी प्रक्रियाओं की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक विकास से क्या तात्पर्य है? इनकी विशेषताओं का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- उत्तर बाल्यावस्था में सामाजिक विकास का क्या तात्पर्य है? उत्तर बाल्यावस्था की सामाजिक विकास की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संवेग का क्या अर्थ है? उत्तर बाल्यावस्था में संवेगात्मक विकास का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संवेगात्मक विकास की विशेषताएँ लिखिए एवं बालकों के संवेगों का क्या महत्व है?
- प्रश्न- बालकों के संवेग कितने प्रकार के होते हैं? बालक तथा प्रौढों के संवेगों में अन्तर बताइये।
- प्रश्न- संवेगात्मक विकास को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बच्चों के भय के क्या कारण हैं? भय के निवारण एवं नियन्त्रण के उपाय लिखिए।
- प्रश्न- संज्ञान का अर्थ एवं परिभाषा लिखिए। संज्ञान के तत्व एवं संज्ञान की विभिन्न अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास से क्या तात्पर्य है? इसे प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भाषा से आप क्या समझते हैं? वाणी एवं भाषा का क्या सम्बन्ध है? मानव जीवन के लिए भाषा का क्या महत्व है?
- प्रश्न- भाषा- विकास की विभिन्न अवस्थाओं का विस्तार से वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भाषा-विकास से आप क्या समझती? भाषा-विकास पर प्रभाव डालने वाले कारक लिखिए।
- प्रश्न- बच्चों में पाये जाने वाले भाषा सम्बन्धी दोष तथा उन्हें दूर करने के उपाय बताइए।
- प्रश्न- भाषा से आप क्या समझती हैं? भाषा के मापदण्ड की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- भाषा से आप क्या समझती हैं? बालक के भाषा विकास के प्रमुख स्तरों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भाषा के दोष के प्रकारों, कारणों एवं दूर करने के उपाय लिखिए।
- प्रश्न- मध्य बाल्यावस्था में भाषा विकास का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक बुद्धि का आशय स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'सामाजीकरण की प्राथमिक प्रक्रियाएँ' पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- बच्चों में भय पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- बाह्य शारीरिक परिवर्तन, संवेगात्मक अवस्थाओं को समझाइए।
- प्रश्न- संवेगात्मक अवस्था में होने वाले परिवर्तन क्या हैं?
- प्रश्न- संवेगों को नियन्त्रित करने की विधियाँ बताइए।
- प्रश्न- क्रोध एवं ईर्ष्या में अन्तर बताइये।
- प्रश्न- बालकों में धनात्मक तथा ऋणात्मक संवेग पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भाषा विकास के अधिगम विकास का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भाषा विकास के मनोभाषिक सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बालक के हकलाने के कारणों को बताएँ।
- प्रश्न- भाषा विकास के निर्धारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भाषा दोष पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भाषा विकास के महत्व को समझाइये।
- प्रश्न- वयः सन्धि का क्या अर्थ है? वयः सन्धि अवस्था में होने वाले शारीरिक परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए - (a) वयःसन्धि में लड़के लड़कियों में यौन सम्बन्धी परिपक्वता (b) वयःसन्धि में लैंगिक क्रिया-कलाप (e) वयःसन्धि में नशीले पदार्थों का उपयोग एवं दुरूपयोग (d) वय: सन्धि में आहार सम्बन्धी आवश्यकताएँ।
- प्रश्न- यौन संचारित रोग किसे कहते हैं? भारत के प्रमुख यौन संचारित रोग कौन-कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- एच. आई. वी. वायरस क्या है? इससे होने वाला रोग, कारण, लक्षण एवं बचाव बताइये।
- प्रश्न- ड्रग और एल्कोहल एब्यूज डिसआर्डर क्या है? विस्तार से समझाइये।
- प्रश्न- किशोर गर्भावस्था क्या है? किशोर गर्भावस्था के कारण, लक्षण, किशोर गर्भावस्था से बचने के उपाय बताइये।
- प्रश्न- युवाओं में नशीले पदार्थ के सेवन की समस्या क्यों बढ़ रही है? इस आदत को कैसे रोका जा सकता है?
- प्रश्न- किशोरावस्था में संज्ञानात्मक विकास, भाषा विकास एवं नैतिक विकास का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सृजनात्मकता का क्या अर्थ है? सृजनात्मकता की परिभाषा लिखिए। किशोरावस्था में सृजनात्मक विकास कैसे होता है? समझाइये।
- प्रश्न- किशोरावस्था की परिभाषा देते हुये उसकी अवस्थाएँ लिखिए।
- प्रश्न- किशोरावस्था की विशेषताओं को विस्तार से समझाइये।
- प्रश्न- किशोरावस्था में यौन शिक्षा पर एक निबन्ध लिखिये।
- प्रश्न- किशोरावस्था की प्रमुख समस्याओं पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- किशोरावस्था क्या है? किशोरावस्था में विकास के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- किशोरावस्था को तनाव या तूफान की अवस्था क्यों कहा गया है?
- प्रश्न- प्रारम्भिक वयस्कावस्था में 'आत्म प्रेम' (Auto Emoticism ) को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- किशोरावस्था से क्या आशय है?
- प्रश्न- किशोरावस्था में परिवर्तन से सम्बन्धित सिद्धान्त कौन से हैं?
- प्रश्न- किशोरावस्था की प्रमुख सामाजिक समस्याएँ लिखिए।
- प्रश्न- आत्म की मुख्य विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- शारीरिक छवि की परिभाषा लिखिए।
- प्रश्न- प्राथमिक सेक्स की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- किशोरावस्था के बौद्धिक विकास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सृजनात्मकता और बुद्धि में क्या सम्बन्ध है?
- प्रश्न- प्रौढ़ावस्था से आप क्या समझते हैं? प्रौढ़ावस्था में विकासात्मक कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रारंभिक वयस्कावस्था के मानसिक लक्षणों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- वैवाहिक समायोजन से क्या तात्पर्य है? विवाह के पश्चात् स्त्री एवं पुरुष को कौन-कौन से मुख्य समायोजन करने पड़ते हैं?
- प्रश्न- प्रारंभिक वयस्कतावस्था में सामाजिक विकास की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- उत्तर व्यस्कावस्था में कौन-कौन से परिवर्तन होते हैं तथा इन परिवर्तनों के परिणामस्वरूप कौन-कौन सी रुकावटें आती हैं?
- प्रश्न- वृद्धावस्था से क्या आशय है? संक्षेप में लिखिए।
- प्रश्न- वृद्धावस्था में संज्ञानात्मक सामर्थ्य एवं बौद्धिक पक्ष पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- पूर्व प्रौढ़ावस्था की प्रमुख विशेषताओं के बारे में लिखिये।
- प्रश्न- युवा प्रौढ़ावस्था शब्द को परिभाषित कीजिए। माता-पिता के रूप में युवा प्रौढ़ों के उत्तरदायित्वों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वृद्धावस्था में रचनात्मक समायोजन पर टिप्पणी लिखिए?
- प्रश्न- उत्तर वयस्कावस्था (50-60 वर्ष) में हृदय रोग की समस्याओं का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- वृद्धावस्था में समायोजन को प्रभावित करने वाले कारकों को विस्तार से समझाइए।
- प्रश्न- उत्तर-वयस्कावस्था में स्वास्थ्य पर टिप्पणी लिखिए।